Friday, February 15, 2019

आपको अभद्र भाषा किसने सिखाई?

आपको यह भाषा किसने सिखाई?


अभद्र भाषा का प्रयोग कहां से प्रारंभ हुआ यह क्या कोई सोचने का विषय बन सकता है इस पर आज से पहले मैंने विचार नहीं किया था। समाज में कोई भी प्रथा, रीति या परंपरा इसलिए आगे बढ़ती है क्योंकि किसी एक ने उसकी शुरुआत कभी की होती है और उसका ही अनुसरण कोई दूसरा करता है और फिर उन दोनों को देख के कोई तीसरा और ऐसे ही पूरा समाज उसे अपना लेता है व इच्छा अनुसार समय के साथ वे सामाजिक संस्कृति में अपनी जगह बना लेती हैं और आगे बढ़ती हैं।
क्रोध व्यक्त करने का यह तरीका और शब्द भी किसी ने तो शुरु किया होगा जो आगे बढ़ा। आज सभी समाज अभद्र शब्दों को दुराचार मानते हैं। कोई भी व्यक्ति जो इन्हें इस्तेमाल करता है वह किसी संस्था या समाज द्वारा पुरुस्कृत नहीं होता है पर मानहानि द्वारा दंडित ज़रूर हो सकता है, फिर भी क्यों यह शब्द प्रचलन में आ जाते हैं। प्रायः क्रोध के लिए, तो कुछ मज़ाक में भी ऐसे शब्दों के इस्तेमाल की छूट ले लेते हैं और इन्हें गरिमा का विषय बनाते हुए इनका भरसक उपयोग करते हैं।

सवाल यह है कि इनका प्रारंभ कहां से हुआ और यह विलुप्त कब होंगे समाज से या किसी व्यक्ति की ज़ुबान से, एक आदर्श आचरण और समाज का परिचय देने।  इनकी इतनी क्या आवश्यकता पड़ी समाज को जो यह आम भाषा में आ गए। हम अपने बच्चों को इनसे दूर होने की हिदायत देते हैं क्योंकि इनका अर्थ खराब होता है और कोई माता पिता या शिक्षक इन्हें सिखाता भी नहीं है फिर भी सबको समय रहते यह ज्ञात हो जाते हैं और इनके अर्थ पता चल जाते हैं। हमने कभी तो यह अपने आसपास, कहीं गली मोहल्लों के विवादों में सुने होते हैं। यह किसी भी शब्दकोश में नहीं होते फिर कहां से इजात हो जाते हैं।

इन सभी शब्दों में या तो कोई जानवर रहता है या स्त्री का कोई रिश्ता अथवा शारीरिक परिपेक्ष। जानवर भी अगर समझ कर मानव की भाषा बोल पाते तो अपनी आपत्ति जताते पर मानव की सभ्यता के विकास की सहभागी स्त्रियां क्यों इतनी शांत हैं इन प्रयोगों पर। ऐसे तो फेमिनिज्म के अलग अलग रूप है पर इसपर क्यूं कोई बड़ा कदम नहीं उठा है अबतक। फ़िल्म “पार्चड” की नायिकाओं ने भी इस फ़िल्म में संवाद किया है कि क्यों महिलाओं पर ही यह बनी है किसी पुरुष पर क्यों नहीं और वह अपनी स्वच्छंदता का उपयोग करके इन्हें बनाती भी हैं। वेब सीरीज जिन पर सिर्फ उम्र की पाबंदी रहती है वह भी इस भाषा का उपयोग दिखाने में पीछे नहीं हैं, महिला और पुरुष दोनों के पात्रों द्वारा। युवा और व्यस्क जो भी इनको देखते हैं इसे मनोरंजन मान रहे है और इनकी चर्चा करते हुए इनका प्रचलन बढ़ा रहे है।

साहित्य और सिनेमा किसी न किसी रूप में समाज का ही चित्रण करते हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए सभी सामग्री लोगों तक उपलब्ध कराते हैं। क्यों न हम ऐसे समाज की पहल रखें जहां पर इस पर फिल्म बने की यहां कोई क्रोधित होकर अपशब्द नहीं बोलता। यहां सबको इज्ज़त मिलती है व शाब्दिक अर्थ से किसी की कोई मानहानि नहीं होती, जो किसी एक मोहल्ले से, एक शहर और फिर एक राज्य से एक देश अनुसरण करें और एक आदर्श समाज की कल्पना करें। कोई भी समाज अपने आप में पूर्ण नहीं होता उसमे खामियां होती हैं यह बात सत्य है पर कुछ खामियों को हम दूर कर सकते हैं। क्रोध, ईर्ष्या आदि यह सब मनुष्य की भावनाएं हैं जो खत्म तो नहीं हो सकती पर उन्हें व्यहवार में लाने का तरीका उन्हें अभिव्यक्त करने का तरीका ज़रूर बदला जा सकता है। व्यवहार तभी सुधरेंगे व समाज तभी बेहतर होगा।

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आपको अभद्र भाषा किसने सिखाई?

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