Tuesday, October 15, 2019

वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य और गांधी जी के विचार

वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य और गांधी जी के विचार 

गांधी जी के विचारों में  पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य जन सेवा है और अख़बारों के जन मानस को प्रभावित करने की क्षमता वे अच्छी तरह से समझते थे.उन्होंने कहा था की जैसे अनियंत्रित पानी बाढ़ के रूप में एक शहर का सर्वनाश कर सकता है उसी प्रकार एक अनियंत्रित कलम भी लोगों के सर्वनाश का कारण बन सकती है.

उन्होंने कहा की पत्रकारिता को कभी भी व्यावसायिकता पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए और विज्ञापनों का प्रकाशन बंद करने पर विचार करना चाहिए क्योंकि विज्ञापन का प्रकाशन वही लोग करवाते है जिन्हे अमीर बनने की बड़ी जल्दी रहती है और ऐसे व्यक्तियों की यह सोच होती है कि पैसों से वे किसी भी प्रकार के विज्ञापन प्रकाशित करवा सकते हैं और ऐसी सोच व्यावसायिकता को अखबार में बढ़ावा देती है जो पत्रकारिता के ध्येय से एकदम विपरीत है। उनके सुझाव में सिर्फ लोक सेवा से सम्बंधित विज्ञापनों को ही  अखबार में स्थान देना चाहिए. यह सभी विचार गाँधी जी ने अपने अखबार इंडियन ओपिनियन में व्यक्त किये हैं।

वर्तमान राष्ट्रीय  परिदृश्य में गांधी जी के यह विचार एकदम विपरीत बैठते है. जो आज के मुख्य अखबार हैं उनमे हम विज्ञापन ज़्यादा और खबरें कम पाते हैं. जो खबरें रहती हैं वह भी किसी विचारधारा से प्रभावित, किसी व्यक्ति या समूह के हित से जुड़ी रहती हैं। ऐसे परिदृश्य में नैतिक मूल्यों को खोजना मुश्किल हो जाता है. मुख्य धारा के  पत्रकार या संपादक व्यावसायिकता की ओर अग्रसर हैं जिस से पत्रकारिता के नैतिक मूल्य जन सेवा का वे उल्लंघन कर रहे हैं अपने निजी फायदे के कारण और कुछ पूंजीवादी प्रबंधन और सत्ता के कारण।

नैतिकता से ही गांधी का अस्तित्व है और पूरा विश्व उनके उदाहरण देते नहीं थकता परन्तु जिस देश में वे जन्मे और उसे स्वतंत्र करवाया वहीँ उनके विचारों को लोग भूल चुके हैं और उन्हें भी एक दिवस से एक सप्ताह तक याद रखते हैं, उनका भी राजनीतिकरण होने लगा हैं.

गांधी जी ने अपना पूरा जीवन अहिंसा के प्रचार में लगाया और देश की वर्तमान स्थिति में हिंसा प्रतिदिन घटित हो रही है.  संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार की  वर्ल्ड रिपोर्ट 2018 के अनुसार नवंबर 2018 तक 18 ऐसे प्रकरण दर्ज हुए जिसमे भीड़ उन्माद, साम्प्रदायिकता,जातिवाद  के कारण हिंसा हुई और 8 लोगों की इनमे मृत्यु हो गयी. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने अभी तक सिर्फ 2016 तक के आकड़े ही प्रकाशित किये हैं इसलिए इनकी संख्या पर हम संतुष्ट नहीं हो सकते हैं.

लीगल सर्विस इंडिया के एक लेख के अनुसार पिछले वर्ष सिर्फ भीड़ उन्माद के कारण 24 लोगों की मौत हुई है और बढ़ते भीड़ उन्माद को लेकर जब कलाकारों ने अपनी चिंता और विरोध करते हुए  प्रधानमंत्री के नाम चिट्ठी लिखी तो उन्ही के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो गयी और मानहानि के प्रकरण चलने लगे. इन कलाकारों में लगभग देश   के 50 जाने  माने नाम हैं जिनमे रामचंद्र गुहा से लेकर गायिका शुभा मुद्गल और फिल्मकार अनुराग कश्यप, श्याम बेनेगल आदि के नाम शामिल हैं।

 अभिव्यक्ति की आज़ादी जिस पर पत्रकार ज़िंदा है और जो  एक नागरिक का अधिकार है उसी के मूल पर आज प्रश्न खड़े हो रहे हैं. महिलाओं के खिलाफ निरंतर आपराधिक मामले हो रहे हैं, हनी ट्रैप जैसे राज़ खुल रहे हैं जो देश के राजनैतिक प्रतिनिधित्व पर सवाल खड़े करते हैं. उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के रहते आगे आकर चुनाव में भाग ले रहें हैं और जन सेवा के विपरीत भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. गांधी के नाम की पार्टी के नेता जैसे चिदंबरम हाल ही में हिरासत में लिए गए.

वर्तमान में साम्प्रदायिकता अपने चरम पर है, नेता खुद अलगाववाद की राजनीति कर मत प्राप्त कर रहें हैं.
गांधी जी ने जिस देश और नागरिक की कल्पना की थी उसके विपरीत पूरा समाज आज जी रहा है. जिनके लिए उन्होंने अहिंसा के द्वारा स्वतंत्रता दिलाई आज वही उस स्वतंत्रता का उपयोग कर हिंसात्मक हो गए हैं. 

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