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Wednesday, June 16, 2021

इन्फॉर्मेशन एज में डिजीटल डिवाइड की तस्वीर


 

इन्फॉर्मेशन एज में डिजीटल डिवाइड की तस्वीर 

कोरोना कॉल के दौरान इंटरनेट की उपयोगिता हमारे जीवन में कई अधिक बढ़ चुकी है, घर गृहस्थी के उपयोग का हर सामान अब हम ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं और हमारे दफ्तर भी अब मोबाइल स्क्रीन और लैपटाप पर चलने लगे हैं, यूट्यूब पर एक निजी कंपनी के विज्ञापन में एक ग्रामीण इलाके की बच्ची ऑनलाइन कक्षा देखकर कहती है की इनका स्कूल गया(नेटवर्क न होने से) और आ भी गया हमारा स्कूल कब आएगा?

डिजीटल डिवाइड आसान शब्दों में इंटरनेट सेवा की असमानता है जिसके कई कारण हो सकते हैं, सबसे पहले इंटरनेट उपयोग एवं उपलब्धता के लिए संसाधान और फिर नेटवर्क और इंटरनेट की स्पीड पर असमानता को इसका कारण मानते हैं। आज सरकार एक तरफ 5जी नेटवर्क ला रही है और दूसरी तरफ किसी ग्रामीण क्षेत्र में कॉल के लिए भी नेटवर्क उपलब्ध नहीं हो रहे हैं।

एनएसएसओ के एक सर्वे अनुसार 2017-18 में सिर्फ 13% ग्रामीण इंटरनेट की सुविधा ले पा रहे हैं जबकि शहर में यह 37% है।

इंटरनेट की सुविधा के अलावा डिजीटल साक्षरता भी डिजीटल डिवाइड में भूमिका निभाती है, हमारे पास फोन में इंटरनेट होते हुए भी उसका उपयोग न कर पाना जैसे ऑनलाइन बिल भुगतान और अन्य ई सेवाएं लेने में सक्षम न होना साक्षरता की कमी के कारण है।

सरकार के द्वारा पीएम वाणी वाईफाई के लिए, भारतनेट प्रोजेक्ट और डिजीटल साक्षरता के लिए कई योजनाएं बनाई हैं पर अंत में सरकारी आंकड़ों और जमीनी अध्ययन में अंतर हमेशा रहता है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार 370 मिलियन विद्यार्थियों ने कोरोना के कारण आनलाइन शिक्षा की ओर रुख किया पर वही हमारे पास उपकरण और नेटवर्क के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों की भी तस्वीर आई जहां विधार्थी या तो पेड़ पर चढ़ कर कक्षा ले रहे है बेहतर नेटवर्क के लिए या फिर अपनी कक्षा के लिए गांव के दूसरे लोगो पर आश्रित हैं जिनके पास मोबाइल है।

पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु की राज्य सरकारों ने स्थिति का अध्ययन कर विद्यार्थीयों को मोबाइल, टैबलेट और लैपटाप देने की योजना बनाई है जो की सराहनीय पहल है और इससे अन्य राज्यों को भी सीखना चाहिए परन्तु डिजीटल डिवाइड क्या सिर्फ उपकरण मुहैया कराने से खत्म हो जाएगा, इसके लिए उन्हें डिजीटल साक्षरता के साथ बेहतर नेटवर्क के ऊपर भी योजना बनानी चाहिए।

नेटवर्क कंपनी की एक वायरल कस्टमर केयर कॉल में उपभोक्ता को कहते हुए सुना ही होगा आपने की हम जब यहां कोरोना के चलते कुछ कमा नहीं रहे हैं इतना महंगा इंटरनेट पैक लेकर क्या करेंगे? आपको इस समय इनको सस्ता करना चाहिए और सहयोग देना चाहिए। एक आम आदमी का यह सुझाव नेटवर्क कंपनियों में बढ़ती पूंजीवादीता की तरफ इशारा करता है जिन्होंने आपदा को अवसर बनाया और जहां हर क्षेत्र में गिरावट आई कुछ कम्पनी के मालिक लाभ में ही रहे।

सरकारी नेटवर्क कंपनी बीएसएनएल जो घाटों के चलते कर्मचारी कम कर रही है और उन्हे समय पर वेतन देने में असमर्थ है इन्ही निजी कंपनीयों के कारण आज इस स्थिति में आई है।

इंटरनेट के सस्ते दामों और उपलब्धता के लिए नेट न्यूट्राल्टी पर चर्चा करने पांच साल पहले एक कमिटी भी गठित हुई थी पर कुछ खास परिवर्तन और निष्कर्ष सामने नहीं रखे गए।


आज फिर से एक नए अध्ययन और रिपोर्ट की आवश्यकता इंटरनेट के पिछले एक साल में बढ़ते उपयोग के कारण हो गई है क्योंकि एक बड़ी आबादी अब सिर्फ इस पर अपनी पढ़ाई और जीविका के लिए निर्भर हो गई है।

विश्व में डिजीटल डिवाइड को मिटाने के लिए बड़ी कंपनीयां स्वयं ही आगे आकर, साझेदारी से नेटवर्क उपलब्धता और सस्ते दर पर इंटरनेट देने की पहल कर रही हैं अगर भारत की भी टेलीकॉम कंपनी साथ आकर साझेदारी से डिजीटल डिवाइड मिटाने की पहल तैयार करें तो शायद डिजीटल इंडिया का सपना जल्दी साकार हो जाये। अब इंटरनेट हमारे लिए पानी,बिजली और खाने जितना ही आवश्यक हो गया है जिसके कारण सरकार को अब डिजीटल डिवाइड मिटाने पर भी अपना ध्यान केन्द्रित कर लक्ष्य निर्धारण करना चाहिए।

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